मंगलवार, 16 मई 2017

केदारनाथ यात्रा: दूसरा दिन - गुप्तकाशी से त्रियुगीनारायण व गौरीकुंड

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1 मई 2017, सोमवार 
हम चार जनें मैं, विकास, मोनू और "पंडत" केदारनाथ यात्रा पर थे और कल हरिद्वार से चलकर गुप्तकाशी पहुंच गये थे। वैसे तो हमारे पास इतना समय था कि हम कल ही गौरीकुंड तक पहुंच सकते थे लेकिन फिर वहां पूरा एक दिन आराम करना पडता। इसलिए गुप्तकाशी में ही रुका गया। शायद आप सब लोग जानते ही होंगे कि दीपावली के समय जब केदारनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद होते हैं तो केदार बाबा कि "डोली" ऊखिमठ स्थित ओमकारेश्वर मंदिर में रखी जाती है और पूरे छह महीनें केदार बाबा की पूजा यहीं होती है। अगले सीजन में कपाट खुलने के समय डोली ओमकारेश्वर मंदिर से केदारनाथ जाती है। डोली के साथ-2 बहुत से पुजारी और लोकल लोग भी होते हैं। केदारनाथ मंदिर में उस साल पूजा करने वाले मुख्य पुजारी जिनको "रावल जी" कहा जाता है, भी डोली के साथ-2 एक दूल्हे की तरह सजकर घोडे पर चलते हैं। साथ ही 5-6 आर्मी के जवान बैगपाइपर बजाते हुए व कुछ लोग ढोल आदि बजाते हुए चलते हैं। कपाट खुलने के तीन -चार दिन पहले ही डोली ऊखिमठ से चल देती है और रास्ते में पडनें वाले हर गांव, हर कस्बे में डोली रुकती जाती है। सब गांव-कस्बे वाले केदारनाथ भगवान के दर्शन करते हैं और "रावल जी" से आर्शीर्वाद लेते हैं। केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलते और बंद होते समय के इन तीन-चार दिनों में पूरे इलाके में उत्सव जैसा माहौल होता है। पूरी केदार घाटी इन दिनों शिवमय हो जाती है। 

हमें कल गुप्तकाशी में पता चल गया था कि "बाबा की डोली" कल ही ऊखिमठ से चली है और आज शाम तक गौरीकुंड पहुंचेगी। आज जब हम त्रियुगीनारायण और गौरीकुंड तक जायेंगे तब रास्ते में हमें कहीं "डोली" जरूर मिलेगी। वैसे भी आज हमें केवल 40-50 किलोमीटर ही जाना है तो कुछ देर तक हम भी "डोली" के साथ ही चलेंगे। इसलिए आज आराम से 7 बजे सोकर उठे, फ्रैश होकर और नाश्ता-पानी करके करीब साढे आठ बजे हम लोग अपनी आज की यात्रा पर निकलने के लिए तैयार हो गये। आज हमें सबसे पहले त्रियुगीनारायण जाना है। गौरीकुंड से करीब 30 किलोमीटर दूर सोनप्रयाग आता है। सोनप्रयाग में मुख्य बस अड्डे से काफी पहले ही उल्टे हाथ को एक रास्ता त्रियुगीनारायण के लिए जाता है जो यहाँ से 13 किलोमीटर दूर है। सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण के लिए एक पैदल रास्ता भी जाता है जो करीब 6-7 किलोमीटर लम्बा है और पूरा रास्ता चढाई भरा है। अरे हाँ ! एक और बात तो भूल ही गया, विकास और "पंडत" सिर्फ चप्पल पहनकर ही आ गये थे। शायद मोनू ने उन्हे ठीक से बताया नही था कि केदारनाथ की यात्रा में 17 किलोमीटर पैदल चलना पडता है और उपर ठंड भी बहुत ज्यादा होगी। शायद बर्फ भी मिले। इन सबके लिए जूते होनें चाहियें इसलिए गुप्तकाशी से निकलने से पहले विकास और "पंडत" ने जूते खरीदे।

करीब नौ ही बज गये हमें गुप्तकाशी से निकलते - निकलते। गुप्तकाशी से सोनप्रयाग के आधे रास्ते में यानी करीब 15 किलोमीटर दूर फाटा आता है। फाटा में केदारनाथ की हेलीकॉप्टर यात्रा के लिए हैलीपैड बना है। बडे पैसे वाले लोग जो पैदल या खच्चर पर नही चल सकते, जिनको कम समय में केदार बाबा के दर्शन करने होते हैं वो लोग यहाँ से हैलीकॉप्टर सेवा का उपयोग करते हैं। फाटा से हैलीकॉप्टर द्वारा केदारनाथ आने - जाने का एक आदमी का किराया शायद 7-8 हजार रुपये लगता है। फाटा से थोडा ही पहले एक गांव के पास हमें "केदार बाबा की डोली" जाती हुई मिल गयी। कितना अच्छा था वो नजारा ! बयां करना मुशकिल है। पूरा उत्सव जैसा माहौल, लोग ढोल-नग़ाडों पर भोले की धुन में मग्न थे। "डोली" के साथ-साथ कई सौ लोग चल रहे थे। आर्मी वालों का एक ट्रक भी था। गांव तक हम भी "डोली" के साथ-साथ चले। अलग ही अनुभव हो रहा था। गांव के किसी नौटियाल सदन के पास गांव वालों के दर्शन के लिए "डोली" रख दी गयी। सब लोग दर्शन कर रहे थे, "रावल जी" का आर्शीवाद ले रहे थे। गांववाले सभी को पानी - चाय पिला रहे थे। हम लोगों ने भी दर्शन किए, अर्शीवाद लिया। थोडी देर यहाँ रुककर हम लोग आगे निकल गये। आंखिर अभी हमें त्रियुगीनारायण जाना था।

फाटा से थोडा आगे एक ढाबे पर हम लोग मैगी और चाय के लिए रुके। यहाँ दूरदर्शन वाले एक रिपोर्टर "अनुपम मिश्र" जी लोकल लोगों के साथ कोई न्यूज कवर कर रहे थे। दरअसल कपाट खुलने के समय तीन तारीख को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी केदारनाथ आने वाले हैं। उसी के लिए आज से ही सरकारी न्यूज चैनल वाले काम पर लग गये हैं। जब तक मैगी बनेगी हम लोग भी लाइव न्यूज बनती देखने के लिए चले गये। "मिश्र" जी लोगों से पूछ रहे थे कि मोदी जी केदारनाथ में पूजा करने आ रहे हैं, आप लोगों की क्या उम्मीदें हैं। यहाँ मौजूद लोगों ने बताया कि केदार घाटी वाले पिछले कई दशकों से केदारनाथ तक सडक बनाने का मुद्दा उठा रहे हैं। लोगों ने कई एप्लिकेशन की कॉपियां भी मिश्र साहब को दिखायी जो उन्होंने विभिन्न नेताओं, मंत्रियों को भेजी थी। मगर अभी तक कुछ नहीं हुआ। लोगों ने आगे कहा कि हम मोदी जी से अपील करते हैं कि वो हमारी इस याचना पर ध्यान दें ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक यहाँ आ सकें, केदार घाटी की तरक्की हो सके और हमारा भी कुछ भला हो सके। इसी बीच ढाबे वाले ने मैगी, चाय तैयार कर दी और हम लाइव न्यूज बीच में ही छोडकर पेट-पूजा करने चले गये।

चाय मैगी खाकर हम लोग आगे बढे। सोनप्रयाग में घुसने से थोडा सा पहले ही त्रियुगीनारायण वाला तिराहा आया और हम लोग त्रियुगीनारायण के लिए मुड गये। एक छोटी सी सिंगल लेन से भी कम जगह वाली सडक है ये लेकिन नई बनी हुई है। पूरा रास्ता चढाई वाला है। कम से कम आधा किलोमीटर तक सारे रास्ते पर खच्चर ही खच्चर थे। शायद कल से ये खच्चर यात्रियों को गौरीकुंड से केदारनाथ तक लेकर जाने और वापिस लाने का अपना कार्य प्रारम्भ कर देंगे। त्रियुगीनारायण तक के तेरह किलोमीटर के रास्ते सिर्फ दो बाइक वाले मिले। शायद त्रियुगीनारायण वाले ही थे किसी काम से सोनप्रयाग या कहीं और जा रहे होंगे। करीब साढे बारह बजे थे जब हम त्रियुगीनारायण पहुंचे। त्रियुगीनारायण एक छोटा सा पहाडी गांव - शिव पार्वती का विवाह स्थल। जी हाँ ! ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव और हिमालय पुत्री माता पार्वती का विवाह यहीं हुआ था। भगवान विष्णु जी उस विवाह के साक्षी थे। इसलिए त्रियुगीनारायण मंदिर में शिव-पार्वती के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा होती है। त्रियुगीनारायण मंदिर काफी पुराना है शायद आठवीं-दसवीं शताब्दी के आसपास का हो। मंदिर का आर्किटेक्चर ठीक वैसा ही है जैसा कि केदारनाथ और बाकी के केदारों का। गुजरात और महाराष्ट्र से आये दो परिवार यहाँ पूजा कर रहे थे। मंदिर के गर्भ गृह के सामने के बरामदे में एक बडा सा हवन कुंड बना हुआ है। कहते हैं यहां पर आज भी अग्नि कुंड के साथ अखण्ड ज्योति, धर्म शिला मौजूद है। शादी के दौरान देवताओं ने विभिन्न शक्तियों से वेदी में विवाह अग्नि पैदा की थी, जिसे धंनजय नाम दिया गया। यह अग्नि आज भी निरंतर जल रही है। इस अग्नि की राख को आज भी लोग अपने घरों में ले जाते हैं, जिसे शुभ माना जाता है। मंदिर के पुजारीगण लोगों को 50-50 रुपये में लकडी दे रहे थे अग्नि कुंड में आहुति के रुप में डालने के लिए। जब हम लोग पहुंचे तो हमें भी लकडी ऑफर की गई मगर हमनें मना कर दिया। पुजारीगणों ने हवन में लकडी डालने की बडी महत्ता बताई। मगर हम कहाँ झांसे में आने वाले थे। आंखिर में हमें वो ही लकडी बीस रुपये में ऑफर की गयी मगर मेरे ये कहने पर कि भाई जी हम तो यहाँ इतनी दूर बस भोले बाबा के दर्शन के लिए आए हैं आप बाकी लोगों से ही पैसे कमा लें। वो पुजारी मुस्कुराये और हम लोगो के वापिस आते समय बकायदा हमसे हाथ भी मिलाया।

त्रियुगीनारायण में दर्शन कर के हम लोग पास वाली दुकान पर जहाँ हमारी स्कूटी खडी थी, चाय पीने के लिए चले गये। मैंने चाय वाले से पूछा, "भाई जी यहाँ से एक रास्ता पंवालीकांठा (घुटटू), खटलिंग ग्लेशियर के लिए भी तो जाता है। वो कहाँ से है?" चाय वाले ने बताया कि ये सामने वाला पहाड देख रहे हो, मंदिर के थोडा सा पहले से ही एक रास्ता उस पहाड के उपर से उस पार पंवालीकांठा के लिए जाता है। पंवालीकांठा की गिनती भारत के सुंदरतम बुग्यालों में होती है। चाय पीकर हम लोग त्रियुगीनारायण से निकल लिए। करीब ढाई-तीन बजे हम गौरीकुंड पहुंचे। मुख्य पार्किंग स्थल के पास ही एक कार के बगल में अपनी स्कूटियां खडी की और किसी होटल-लॉज में कमरा देखने के लिए निकल लिये। चार बिस्तरों का एक कमरा 800 रुपये में आसानी से मिल गया। थोडा आराम करके हम लोग हल्का-फुल्का कुछ खानें और गौरीकुंड का मुआयना करने निकल गये। पहले गौरी देवी मंदिर गये। गौरा मंदिर की आसपास का पूरा इलाका 2013 मे आयी आपदा में तबाह हो गया था। यहाँ स्थित गर्म कुंड, तप्त कुंड, एक आश्रम और निचले हिस्से में बसे न जानें कितनें होटल बह गये थे, तबाह हो गये थे।

सवा चार बजे के करीब केदार बाबा की डोली गौरीकुंड पहुंची। डोली को गौरी माता के मंदिर में रखा गया। यहाँ भी बाबा के दर्शन के लिए लोगों की भीड लग गयी। आज रात भोले बाबा भी यहीं गौरीकुंड में आराम करेंगे और "जाट बाबा" भी! शाम के समय हमनें मार्किट से अगले दिन काम आने वाली चीजें जैसे लट्ठ, पन्नी वाला रेन कवर - विकास के अनुसार "मोर्चरी वाली पन्नी" खरीदी। रात में डिनर के बाद कल के बारे प्लानिंग की - डोली सुबह आठ बजे चलेगी, बाकी सबने डोली के साथ-2 उपर चलने की इच्छा जाहिर की। मगर मैंने कहा कि भाई वो सारे लोग पहाडी हैं, हमसे कहीं ज्यादा तेज चलेंगे वो लोग। हमें उनसे पहले निकलना होगा। वैसे भी मेरे अलावा बाकी तीनों में से किसी को भी ट्रैकिंग का अनुभव नहीं था और मुझे भी थोडा बहुत ही अनुभव था। सुबह सात बजे तक निकलने का प्लान करके हम लोग सो गये।

जय बाबा केदार !!

केदारनाथ मंदिर के इस साल के मुख्य पुजारी "रावल जी" से आर्शीवाद गृहण करते हुए। 2013 में जब केदारनाथ में आपदा आयी थी उस साल भी ये ही मुख्य पुजारी थे। पुजारी जी कर्नाटक के रहने वाले हैं और लिंगायत ब्राह्मण हैं। जैसा कि रिवाज है लिंगायत ब्राह्मण ही केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी का कार्यभार सम्भालते हैं और यहाँ के रहनवासी इन्हे "रावल जी" के नाम से पुकारते हैं।

ये पुजारी जी ही उखिमठ से गौरीकुंड तक बाबा की सेवा में लगे थे। रास्ते में पडने वाले गांवों के लोगों को ये ही जौं वगरह दे रहे थे बाबा को अर्पण करने के लिए। इनके बारे में कुछ ज्यादा जानकारी एकत्रित नहीं कर सका।

मोनू  दर्शन करते हुए - इस बार मुंह बंद है !!

अब विकास की बारी

हर हर महादेव

और आंखिर में "पंडत"
यहाँ चाय और मैगी खायी गयी थी।

डीडी न्यूज  की वैन। पास में ही कहीं "अनुपम मिश्र" जी न्यूज कवर कर रहे हैं।
त्रियुगीनारायण वाले तिराहे के पास


त्रियुगीनारायण के रास्ते में - मैं और मोनू थोडा आगे निकल गये थे। एक अच्छी सी फोटोजेनिक जगह देखकर हम लोग रुक गये और....और क्या? फोटो सेशन शुरु


"पंडत"और विकास आ गये हैं। इतनी देर से क्युं आये बे?!


पास में ही ये जगह थी। गोविंद बैंड - ओम नमः शिवाय

त्रियुगीनारायण गांव में घुसते ही लगा मिला एक सूचना बोर्ड। लिखा है तोसी पांच किलोमीटर। शायद त्रियुगीनारायण से आगे कोई गांव है और ये सडक वहीं तक जाती है।

त्रियुगीनारायण मंदिर - शिव पार्वती का विवाह स्थल

अखंड ज्योति अग्नि कुंड - इसी अग्नि कुंड में लकडी डालने कर आहुति देने का रेट 50 रुपये है।

सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण के रास्ते में भी एक जगह हैलीपैड बना है। वापस आते समय हम यहाँ कुछ देर रुके थे।

हैलीपैड से दिखता सोनप्रयाग के आसपास का इलाका

गौरीकुंड में माता गौरी के मंदिर में "टकलों" की टोली - पता नही यहाँ भी लोग बाल अर्पण करते हैं क्या? शायद नहीं। गौरी देवी मंदिर के पास ही बायीं ओर थोडा आगे कहीं गर्म कुंड था, मंदिर के आसपास भी काफी होटल वगरह थे जो 2013 की त्रासदी में तबाह हो गये थे।

केदारबाबा की डोली गौरी देवी मंदिर में रखी जा रही है।
शाम के समय होटल की छत पर कोई साधुओं का जमावडा। 56 साधुओं को जिमाया गया था यहाँ एक साथ।
गौरीकुंड से केदारनाथ तक की यात्रा अगले भाग में जारी..

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