सोमवार, 12 सितंबर 2016

श्रीखंड महादेवः साक्षात दर्शन, पार्वती बाग से श्रीखंड और वापस भीमद्वार

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28 जुलाई, दिन गुरूवार
श्रीखंड महादेव की इस महायात्रा में आज का दिन मेरे लिये सबसे महत्तवपूर्ण था। कल बारिश होने के कारण मैं दर्शन करने नहीं गया था। जबकि अनंत ने कल दर्शन कर लिये थे। आज मेरी बारी थी। सुबह साढे चार बजे मुझे हरियाणा वालों ने उठाया, "अरे ओ, मेरठ आले भाई। उठ जा। निकलना ना है के? साढे चार बज ग्ये"। "हाँ भाईसाब उठ रहा हूँ" मैंने आंख मलते हुए कहा। रात को सही से नींद नहीं आयी थी। शायद आज श्रीखंड बाबा के द्वार तक जाने की उत्सुकता के कारण हममें से कोई भी ठीक से नहीं सोया था। बस हम उठकर फ्रेश हुए और चलने की तैयारी करने लगे। मेरे बैग में कुछ दवाईयां, बादाम और किशमिश थी। मैंने बादाम और किशमिश हरियाणा वालों के बैग में रखा और दवाईयां अपनी जेब में! कपूर मेरी जेब में पहले से ही था, बस पानी की बोतल का कुछ जुगाड नही मिल रहा था सो बोतल हाथ में ले ली गयी। अपना बैग मैंने यहीं टेंट में ही छोड दिया इस उम्मीद में कि जब गंगाराम नीचे से आयेगा तो शायद उठा लाये और अगर नही लाया तो हम वापस आते समय ले लेंगे। आज की इस कठिन यात्रा में बैग लेकर चलना सही नही था। हरियाणा वाले भाइयों के पास ग्लूकोस और ओ०आर०एस० के काफी पैकट थे, इसलिए मुझे ग्लूकोस वगरह ले जाने की जरूरत नही थी। अपने-2 लट्ठ उठाकर करीब सवा पांच बजे महादेव के जयकारे के साथ हम लोगो ने अपनी आज की यात्रा शुरु की। आज मौसम बिल्कुल साफ था और हल्की-हल्की चांदनी खिली हुई थी। पार्वती बाग से निकलते ही हमें ब्रह्म कमल मिलने शुरू हो गये।

पार्वती बाग से करीब आधा-पौन किलोमीटर चलने के बाद मुझे पेट में गुड-गुड सी हुई तो एक पानी के स्रोत के पास हल्का हुआ गया। कहीं मुझे "लूज मोशन" ना शुरू हो जायें इसके लिए मैंने हरियाणा वालों से एक ओ०आर०एस० का पैकेट लेकर अपने पानी की बोतल में मिला लिया। उन्होने कहा बस अब इसको पीते रहना कोई दिक्कत नहीं होगी और दिक्कत हुई भी नहीं। नैनसरोवर से लगभग आधा किलोमीटर पहले एक ऐसा स्थान आता है जहाँ उपर से अक्सर पत्थर गिरते हैं। ढलान बहुत अधिक होने के कारण जो भी पत्थर एक बार लुढकना शुरू करता है जल्द ही गोली की रफ्तार पकड लेता है। कभी-कभी तो इन पत्थरों की चपेट में यात्री भी आ जाते हैं। जरा सोचो, जो इन गोली की रफ्तार से गिरते पत्थरों की चपेट में आ जाता होगा उसका क्या होता होगा? इस करीब सौ मीटर के "डेंजर जोन" को हमने बडी सावधानी से पार किया। करीब साढे सात बजे हम लोग नैनसरोवर पहुँचे। सुबह की हल्की-हल्की धूंप में नैनसरोवर झील बहुत ही सुंदर लग रही थी। झील के चारों तरफ पत्थरों के चौबंदी हो रखी है जिसके आगे जाने के लिए जूते उतारकर नंगे पांव झील पर जाना पडता है। कहते हैं श्रीखन्ड जाने वाले यात्रियों को नैनसरोवर में स्नान करने से बडा पुण्य मिलता है और शरीर के तापमान पर कुछ असर भी नहीं पडता ! आज ये पुण्य कमाना मेरे सामर्थ्य से बाहर था। नहाना तो दूर मैं तो जूते उतारकर हाथ-पैर धुलने भी नहीं गया। अरे ! कौन जाता इतनी ठंड में इस आधी जमी झील में हाथ-पैर धुलने ! हरियाणा वालों में से एक भाईसाब गये और हमारी पानी की बोतलें भर लाये।

नैनसरोवर में हम लोग करीब 15-20 मिनट रुके। अब तक गंगाराम हमारे पास नहीं पहुँचा था और पीछे मुडकर देखने पर भी कहीं आता दिखाई नहीं दे रहा था। "अरे, तेरा पोर्टर तो आया नी मेरठ आले भाई", हरियाणा वाले एक भाईसाब ने कहा। " हाँ भाईसाब, आणा तो चहिए था उसे अब लो। कह तो रहा था कि आप लोगो को नैनसरोवर तक पकड लूँगा। पता नी कहाँ रह ग्या" मैंने कहा और हम नैनसरोवर के आगे सीधे खडे पहाड की ओर चल पडे। नैनसरोवर तक तो रास्ता पगडंडी के रूप में बना हुआ है। मगर यहाँ से आगे ना कोई पगडंडी है और ना कोई रास्ता। हैं तो बस पत्थर ही पत्थर ! इन्हीं पत्थरों के उपर लाल-पीले निशान लगे हुए थे। हमें बस इन्ही निशानों के बने हुए रास्ते पर ही जाना था। नैनसरोवर से श्रीखंड तक करीब 4-5 पहाड पार करने पडते हैं। जब हम इस पहले पहाड की चोटी पर पहुँचे तब हमें नीचे पार्वती बाग की ओर से गंगाराम आता दिखाई दिया। हालाँकि मुझे इस ग्रुप के साथ अब तक कोई दिक्कत नहीं आयी थी, सब लोगों का अच्छा साथ मिला था। मगर फिर भी गंगाराम को देखकर मन ही मन काफी खुशी हुई। थोडी ही देर में गंगाराम हमारे पास पहुँच गया। गंगाराम की अच्छाई और समझदारी का एक और नमूना मुझे यहाँ देखने को मिला। वो ना सिर्फ पार्वती बाग में रखा मेरा बैग लाया था बल्कि उसमें पानी की दो बोतलें भी रख रखी थी। हालाँकि उसको बिस्किट नहीं मिले थे। आते ही मुझसे बोला, "बम शंकर, सर मुझे पता है आपको पहाड चढते समय काफी प्यास लगती है। इसलिए मैं ये दो बोतल पानी ले आया।" गंगाराम वाकई एक अच्छा पोर्टर, गाइड और उससे भी कहीं बढकर एक बहुत अच्छा इंसान है। अब मैंने अपने हाथ में पकडी पानी की बोतल गंगाराम को दी और जेब से कपूर निकाल लिया था। रास्ते पर पत्थर थे और कहीं- कहीं बर्फ भी। यहाँ ऑक्सीजन की कमी साफ महसूस हो रही थी इसीलिए मैं बीच-बीच में कपूर सूंघ लेता था। इससे मुझे थोडी राहत सी महसूस हो रही थी। बहुत धीरे-धीरे हम लोग अपनी मंजिल की ओर बढते रहे।

श्रीखंड महादेव जाने के दो ट्रेक के बारे में मुझे पता है। एक तो यहीं पारंपरिक रास्ता जो जांव से थाचडू - भीमद्वार - पार्वती बाग होते हुए है। तथा एक दूसरा रास्ता जो बहुत कम लोग या कुछ लोकल लोग यूज करते हैं ज्योरी के पास फांचा से आता है जो सीधा नैनसरोवर से करीब डेढ-दो किलोमीटर आगे इसी रास्ते में मिलता है। लेकिन उस रास्ते पर चढाई ज्यादा है और रास्ते में शायद कहीं रुकने-खाने का भी बंदोबस्त नही होता है। भीमबही से थोडा पहले हमें पहाडी के उस ओर से फांचा वाले रास्ते से कुछ लोग भी आते मिले।

करीब दस बजे हम लोग भीमबही पहुंचे। भीमबही में बहुत बडे-बडे पत्थर बहुत ही सलीके से न जाने किसने तह बनाकर रखे हुए हैं और उससे भी आश्चर्यचकित करने वाली बात ये कि इन पत्थरों पर छोटे-छोटे गढ्ढेनुमा निशान बने हुए हैं जैसे इन पर किसी ने कुछ लिख रखा हो। ऐसा माना जाता है कि ये कारनामा महाबली भीम का है और इन पत्थरों पर उन्होनें अपनी हिमालय यात्रा के दौरान अपना कुछ हिसाब-किताब लिखा है। भीमबही में पत्थर इतने बडे-बडे हैं कि इन पर लट्ठ ले सहारे नहीं चढा जा सकता। यहाँ सिर्फ अपने हाथ और पैरों की ताकत ही काम आती है। जैसे ही हमनें इन विशाल पत्थरों के समूह को पार किया तो सामने श्रीखंड शिवलिंग और त्रिशुल की चट्टान के एक बार फिर दर्शन हुए। मगर अभी भी एक आंखिरी और सबसे बडी चुनौती बाकी थी। हमारे सामने था एक आंखरी ग्लेशियर जिसके उपर हमें लगभग 150 मीटर चलकर जाना था। ग्लेशियर पर हम सभी साथियों ने एक साथ लाइन बनाकर चलना शुरू किया। गंगाराम ने हमें समझाया कि अपने लट्ठ को जोर से बर्फ में गाडकर और जूतो के अगले हिस्से को थोडा बर्फ में धंसाकर चलो तो फिसलोगे नहीं। हमने ऐसा ही किया और धीरे-धीरे ये अंतिम बाधा भी पार कर ली।

करीब ग्यारह बजे थे जब हम श्रीखंड पहुंचे। श्रीखन्ड में जूते निकालने पडे और शिवलिंग के पास जाकर भोलेनाथ को नमन किया। जम्मू वाले दोनो बंदे परिक्रमा कर रहे थे, वे हमसे थोडा सा पहले पहुँच गये थे। मैं दरअसल शुरू से ही सबसे पीछे चल रहा था, बस मुझसे पीछे गुजरातियों में से एक बंदा था। यहाँ हरियाणा वाले भाइयों ने भोलेबाबा की आरती की और डमरू बजाकर भजन भी गाया। मैं बस आंखे बंद करके बैठकर ताली बजाता रहा। पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। श्रीखन्ड से ठीक आगे वाली पहाडी को कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है और यह स्थान चारों ओर से बर्फ से घिरा हुआ है। कार्तिकेय चोटी तक जाने के लिए रास्ता तो है लेकिन वहां कोई नहीं जाता। श्रीखण्ड में ही लगे एक सूचना पट्ट पर मैंने पढा कि यहाँ से एक रास्ता खीरगंगा और मणिकर्ण के लिए भी जाता है मगर ये पूरा रास्ता ग्लेशियरों से भरा है और बहुत ही खतरनाक है। यहाँ हम लोग करीब आधा घंटा रुके।  बहुत ही गजब की फीलिंग्स थी। हमने, मैंने ये कर दिखाया था।

श्रीखंड में आधा घंटा रुककर हम वापस चल दिये। मन में प्रसन्नता और संतोष के मिले जुले भाव थे। मगर आधा काम तो अभी भी बाकी था, वापस जाना। हमनें धीरे-धीरे नीचे उतरना शुरू किया। इन विशाल पत्थरों पर नीचे उतरना भी उतना ही मुश्किल हो रहा था जितना कि उपर चढना। शरीर में भी दम नहीं था, सुबह से कुछ भी नही खाया था। बस पानी, ग्लूकोस और ड्राई फ्रूट के सहारे ही आज की यात्रा चल रही थी। उपर से ऑक्सीजन की कमी ! नैनसरोवर से एक-डेढ किलोमीटर पहले मुझे एक उल्टी भी हुई। शायद ये सुबह से खाली पेट रहकर इतनी मेहनत करने का असर था। मेरे जैसी ही हालत हरियाणा वाले एक सर जी की भी थी जो उन छहों में सबसे बुजुर्ग थे, शायद पचास के आस-पास की उम्र के। नैनसरोवर पहुँचकर आंखिर इन बडे-बडे पत्थरों वाले पहाड से पीछा छूटा।

करीब साढे तीन बजे पार्वती बाग पहुँच गये। आज वो अंकल जी यहाँ से जा चुके थे। उसी टेंट में चाय पी और थोडा आराम किया। आज इस टेंट में पुलिस वालों के बैग्स पडे हुए थे, अर्थात आज पुलिस वाले यहाँ से निकल जायेंगे। बेचारे पुलिस वाले ! उन्हे भी अब अपने - अपने घरों को जाने को मिलेगा। ये भी बेचारे पिछले 10-15 दिन से इधर ही पडे हुए थे। टेंट वाले का कल से अब तक का हिसाब करके हम नीचे भीमद्वार की ओर निकल लिए। भीमद्वार पहुंचकर बडी शांति मिली। अनंत को पूरे जोश से बताया कि मैं भी दर्शन करके ही लौटा हूँ। हाँलाकि मारे थकान के पूरे शरीर का बुरा हाल था। अनंत को बोल दिया भाई अब सुबह की वापसी की यात्रा आराम से शुरू करेंगे। बस डिनर किया और लेटते ही कब नींद आ गयी पता ही नही चला।
 
पार्वती बाग से आगे मिले ब्रह्म कमल

थोडा और पास से


ब्रह्म कमल खिल रहा है।

नैनसरोवर में चौधरी साब - हालत खस्ता !
नैनसरोवर से आगे के रास्ते में कहीं पर
उपर वाली पहाडी से दिखता नैनसरोवर और उसके आस-पास की सुंदरता



नैनसरोवर से भीमबही के रास्ते में कहीं - चौधरी साब, गंगाराम और हरियाणा वाले ग्रुप से एक सर
भीमबही में पत्थरों पर न जाने ये क्या खुदा हुआ है?
रास्ते में पडने वाले ग्लेशियर और उसके आस-पास का विहंगम दृश्य

खतरनाक रास्ते
बर्फ और पत्थर - यही है बस इस रास्ते पर


श्रीखंड बाबा के द्वार पर पहुंचने से जरा पहले आंखिरी ग्लेशियर-बर्फ पार करने के बाद

श्रीखंड बाबा के द्वार चौधरी साब -  हालत और भी खस्ता !!
श्रीखंड के बारे में कुछ जानकारी

जय श्रीखंड बाबा - हर हर महादेव। पीछे वाली चोटी को कार्तिकेय माना जाता है। कहते हैं वहां तक कोई नही जाता।

जाट और शिवा - एक जबरदस्त कॉम्बिनेशन !!

हरियाणा वाले शिवाराधना कर रहे हैं। पीछे जो चोटी दिख रही है उसे कार्तिकेय कहा जाता है और उस ओर जबरदस्त बर्फ है।




















श्रीखंड में पूरी जाट पार्टी - चौधरी साब और हरियाणा आले !



श्रीखंड शिवलिंग के पास से बनाया गया विडियो!!


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