सोमवार, 26 सितंबर 2016

श्रीखंड महादेव: वापसी की यात्रा

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29 जुलाई, दिन शुक्रवार।
हमारी श्रीखंड यात्रा का आज पांचवा दिन था। कल मैंने श्रीखण्ड बाबा के दर्शन किए थे। और आज हमें अपनी वापसी की यात्रा शुरू करनी थी। आराम से साढे छह बजे सोकर उठे। नित्य कर्म से फारिग होकर चाय मैगी खायी और टेंटवाले का हिसाब करके चल पडे। भीमद्वार में हम लोग तीन दिन रुके थे। तीन लोगो के 350 रुपये प्रतिदिन पर-आदमी के हिसाब से 3000 रुपये बने। आज हम बहुत खुश थे, आंखिर यात्रा सफलतापूर्वक पूरी करके जा रहे थे ! दोनो में से किसी को भी कोई खास परेशानी नही हुई थी। मेरी थकान भी रात आराम करने से खत्म हो गयी थी और अनंत तो यहाँ कल से ही आराम फरमा रहा है। करीब सवा सात बजे हम लोग भीमद्वार से निकले। तय किया कि आज ही जांव तक वापस पहुँचेंगे। आज हमे ज्यादातर जगहों पर उतराई वाले रास्तों पर ही चलना है, बस कहीं-2 पर ही थोडी बहुत चढाई है। शाम - अंधेरा होने तक जांव पहुंच ही जायेंगे।
भीमद्वार में सुबह हमारे टेंट का अंतिम फोटो
आज मौसम साफ था, धूंप निकली हुई थी। करीब दो किलोमीटर चलने पर वो दोनो गुजराती बंदे मिले जो कल मेरे साथ दर्शन के लिए गये थे। वो लोग भी कल शाम को अंधेरा होने तक भीमद्वार ही आ गये थे। उन गुजरातियों का तीसरा, वो मोटा साथी कल ही यहाँ से भी निकल लिया था और आज इन लोगो को थाचडू में मिलेगा। बस, अब तो हम तीन से पांच हो गये ! साथ-साथ ही चलते रहे। कुंसा पहुंचकर फिर से सूप का ऑर्डर दे दिया गया।  यहाँ आज भी भेड़ें उपर के पहाड वाले घास के मैदान में विचरण कर रही थी। यहाँ कुंसा में ही इन भेड़ों के मालिक "गद्दियों" के ठिकाने भी बने थे। पूरे हिमाचल के ऊँचे से ऊँचे घास के मैदानों पर इन्ही गद्दियों का राज है। बर्फबारी के समय में ये लोग नीचे कम ऊंचाई वाले स्थानों पर चले जाते हैं और गर्मियों में जब बर्फ पिंघलती है तो ये फिर से इन ऊंचे इलाकों में आ पहुंचते हैं। यहाँ भी जब नवम्बर-दिसम्बर में बर्फ पड जायेगी तब ये लोग नीचे वाले स्थानों पर चले जायेंगे और मई - जून में फिर यहाँ आ जमेंगे। असल में ये गद्दी ही हिंदुस्तान के सबसे बडे घुमक्कड हैं। खैर, करीब बीस मिनट कुंसा में रूककर और सूप निपटाकर हम चल दिये।

दयाल चाइनीज कॉर्नर - यहाँ सूप बडा मस्त बना था। आते और जाते समय दोनो बार यहाँ सूप पिया गया।
करीब सवा दस बजे हम लोग भीमतलई पहुँचे। यहाँ हमने चाय पी और अनंत व गंगाराम ने परांठे भी खाये। मुझे पहाड पर यात्रा करते समय भूख कम ही लगती है और वैसे भी हमने अभी करीब एक घंटा पहले एक कटोरा भर के सूप पिया ही था। अब बस थाचडू में लंच ही करूंगा। भीमतलई में हम लगभग आधा घंटा रूके। यहाँ से निकले तो सामने वो कालीघाटी की जबरदस्त चढाई मुँह उठाये खडी थी जिसको हमने तीन दिन पहले उतरा था। यहीं पर वो पार्वती बाग वाले अंकल जी मिल गये जिन्होने मुझे दर्शन के लिए जाने के लिए प्रेरित किया था। वो कल सबेरे के पार्वती बाग से चले हुए थे और आज शाम तक किसी तरह थाचडू पहुँचेगे। अंकल जी ने जब पूछा कि दर्शन किए क्या तो उनको बडी खुशी से बताया कि हम सभी दर्शन करके ही आये हैं। अंकल जी को आंखिरी राम-राम करके हम लोग आगे निकल गये। भगवान करे इन घुमक्कड अंकल जी से फिर से मिलना हो ! ले -दे कर किसी तरह से कालीघाटी की चढाई पूरी की। अब तो बस सिंहगाढ तक पूरी उतराई ही उतराई है - डंडाधार की उतराई जो आते समय भयानक चढाई थी।
 
दो बजे थे जब हम थाचडू पहुँचे। यहाँ हमे हरियाणा वाले वो बंदे भी मिल गये जो कल मेरे साथ श्रीखंड गये थे। वे यहाँ लंच कर रहे थे। राजमा चावल बने थे,बस हम भी टूट पडे। थाचडू में ही गुजरातियों का वो तीसरा साथी भी मिल गया जो पार्वती बाग से वापस आ गया था। खा-पीकर और आधा घंटा अराम करके निकल थाचडू से चल दिये। डंडाधार की इस चढाई ने जितना आते समय परेशान किया था उतना ही ये अब उतरते समय भी परेशान कर रही थी। पिछले दो-तीन दिनों में बारिश होने की वजह से रास्ते में कीचड भी हो गया था। इसलिए हम लोग धीरे-धीरे ही चल रहे थे। थाटीबील से करीब एक किलोमीटर आगे से मेरे घुटने में दर्द होने लगा था। जिस वजह से मुझे अब उतरने में और भी परेशानी हो रही थी। एक ही पैर के सहारे उतरना पड रहा था। उधर अनंत के पैर में छाला पड गया था तो थाचडू से पूरे रास्ते वो नंगे पैर ही चल रहा था।
 
बराठी नाले तक आंखरी आधा किलोमीटर में मुझे काफी दिक्कत हुई और मैं सबसे पीछे रह गया। बस गुजराती भाई, मेहुल जी ही मेरे साथ थे। उनको भी घुटने में दिक्कत हो रही थी। खैर धीरे-धीरे उतरते हुए हम दोनो भी किसी तरह बराठी नाले पर पहुँच ही गये। यहाँ हरिद्वार वाले एक बाबा का छोटा सा आऋम है। यहाँ सब लोग बैठे मिल गये - हमारे साथ वाले भी और हरियाणा वाले भी। यहाँ चाय और शक्कर पारे खाने को मिले। मजा आ गया। करीब सवा पाँच बजे थे जब हम यहाँ से निकले। अब बस सिंहगाढ तक की थोडी से मेहनत बची थी। सिंहगाढ-बराठे नाले का ये ढाई किलोमीटर का सफर पूरी श्रीखंड यात्रा का सार है। बस कैडा-सा जी करके पार कर दिया ये सफर भी।
 
सवा छह बजे तक सिंहगाढ पहुंचे तो प्रशासन वाले मिले जिन्होने रजिस्ट्रेशन किया था। पूछने लगे कि अभी और भी लोग बचे हैं क्या? हमने कहा एक अंकल जी तो बचे हैं जो कल तक आयेंगे बाकी का हमें पता नी। यहाँ से अब जांव पहुँचने में हमें कोई दिक्कत नही थी। सीधा-सीधा रास्ता जो था जांव तक। फिर भी हमें जांव पहुँचते-पहुँचते अंधेरा हो गया। गंगाराम हमारे साथ जांव तक आया। यहाँ से अब वो पैदल पाँच किलोमीटर दूर अपने गांव जायेगा। हमसे बिछुडते वक्त हमें गंगाराम के चेहरे पर कुछ करुणा के भाव भी दिखे। आंखिर पिछले पांच दिनो में अपनी दोस्ती जो हो गयी थी। गंगाराम को विदा करके हमने आज यहीं जांव में ही रूकने का फैसला किया। हाँलाकि अभी केवल आठ ही बजे थे और हम अभी भी बागीपुल पहुँच सकते थे। मगर आज 25 किलोमीटर पैदल चले थे। शरीर में दम बिल्कुल नही था कुछ भी करने का। यहीं जांव में ही जहाँ बाइक खडी की थी उसी होटल में एक कमरा लिया। डिनर किया और बस पड के सो गये।
 
अगले दिन सुबह आठ बज गये थे जब हम जांव से चले। अरे हाँ, याद आया बागीपुल में तो फौजी अंकल के यहाँ हमारा बाकी का सामान भी रखा है। बागीपुल से बाकी का सामान उठाया और निकल लिए वापस। हमारी वापसी की यात्रा में पूरे रास्ते बारिश होती रही और हम दो दिन में हरिद्वार पहुंचे। हमारी श्रीखंड यात्रा बिना किसी खास समस्या के पूरी हो गयी थी। वापसी में पूरे रास्ते एक ही बात दोहराते आए कि अब दो-चार महीने तक कोई ट्रेकिंग कोई यात्रा नही की जायेगी। मगर जैसे ही एक आध महीना बीतेगा तो घुमक्कडी का कीडा फिर से जोर मारेगा और शायद फिर हम कहीं निकल लें।
 
बम शंकर - हर हर महादेव
 


 
 
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सोमवार, 12 सितंबर 2016

श्रीखंड महादेवः साक्षात दर्शन, पार्वती बाग से श्रीखंड और वापस भीमद्वार

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28 जुलाई, दिन गुरूवार
श्रीखंड महादेव की इस महायात्रा में आज का दिन मेरे लिये सबसे महत्तवपूर्ण था। कल बारिश होने के कारण मैं दर्शन करने नहीं गया था। जबकि अनंत ने कल दर्शन कर लिये थे। आज मेरी बारी थी। सुबह साढे चार बजे मुझे हरियाणा वालों ने उठाया, "अरे ओ, मेरठ आले भाई। उठ जा। निकलना ना है के? साढे चार बज ग्ये"। "हाँ भाईसाब उठ रहा हूँ" मैंने आंख मलते हुए कहा। रात को सही से नींद नहीं आयी थी। शायद आज श्रीखंड बाबा के द्वार तक जाने की उत्सुकता के कारण हममें से कोई भी ठीक से नहीं सोया था। बस हम उठकर फ्रेश हुए और चलने की तैयारी करने लगे। मेरे बैग में कुछ दवाईयां, बादाम और किशमिश थी। मैंने बादाम और किशमिश हरियाणा वालों के बैग में रखा और दवाईयां अपनी जेब में! कपूर मेरी जेब में पहले से ही था, बस पानी की बोतल का कुछ जुगाड नही मिल रहा था सो बोतल हाथ में ले ली गयी। अपना बैग मैंने यहीं टेंट में ही छोड दिया इस उम्मीद में कि जब गंगाराम नीचे से आयेगा तो शायद उठा लाये और अगर नही लाया तो हम वापस आते समय ले लेंगे। आज की इस कठिन यात्रा में बैग लेकर चलना सही नही था। हरियाणा वाले भाइयों के पास ग्लूकोस और ओ०आर०एस० के काफी पैकट थे, इसलिए मुझे ग्लूकोस वगरह ले जाने की जरूरत नही थी। अपने-2 लट्ठ उठाकर करीब सवा पांच बजे महादेव के जयकारे के साथ हम लोगो ने अपनी आज की यात्रा शुरु की। आज मौसम बिल्कुल साफ था और हल्की-हल्की चांदनी खिली हुई थी। पार्वती बाग से निकलते ही हमें ब्रह्म कमल मिलने शुरू हो गये।

पार्वती बाग से करीब आधा-पौन किलोमीटर चलने के बाद मुझे पेट में गुड-गुड सी हुई तो एक पानी के स्रोत के पास हल्का हुआ गया। कहीं मुझे "लूज मोशन" ना शुरू हो जायें इसके लिए मैंने हरियाणा वालों से एक ओ०आर०एस० का पैकेट लेकर अपने पानी की बोतल में मिला लिया। उन्होने कहा बस अब इसको पीते रहना कोई दिक्कत नहीं होगी और दिक्कत हुई भी नहीं। नैनसरोवर से लगभग आधा किलोमीटर पहले एक ऐसा स्थान आता है जहाँ उपर से अक्सर पत्थर गिरते हैं। ढलान बहुत अधिक होने के कारण जो भी पत्थर एक बार लुढकना शुरू करता है जल्द ही गोली की रफ्तार पकड लेता है। कभी-कभी तो इन पत्थरों की चपेट में यात्री भी आ जाते हैं। जरा सोचो, जो इन गोली की रफ्तार से गिरते पत्थरों की चपेट में आ जाता होगा उसका क्या होता होगा? इस करीब सौ मीटर के "डेंजर जोन" को हमने बडी सावधानी से पार किया। करीब साढे सात बजे हम लोग नैनसरोवर पहुँचे। सुबह की हल्की-हल्की धूंप में नैनसरोवर झील बहुत ही सुंदर लग रही थी। झील के चारों तरफ पत्थरों के चौबंदी हो रखी है जिसके आगे जाने के लिए जूते उतारकर नंगे पांव झील पर जाना पडता है। कहते हैं श्रीखन्ड जाने वाले यात्रियों को नैनसरोवर में स्नान करने से बडा पुण्य मिलता है और शरीर के तापमान पर कुछ असर भी नहीं पडता ! आज ये पुण्य कमाना मेरे सामर्थ्य से बाहर था। नहाना तो दूर मैं तो जूते उतारकर हाथ-पैर धुलने भी नहीं गया। अरे ! कौन जाता इतनी ठंड में इस आधी जमी झील में हाथ-पैर धुलने ! हरियाणा वालों में से एक भाईसाब गये और हमारी पानी की बोतलें भर लाये।

नैनसरोवर में हम लोग करीब 15-20 मिनट रुके। अब तक गंगाराम हमारे पास नहीं पहुँचा था और पीछे मुडकर देखने पर भी कहीं आता दिखाई नहीं दे रहा था। "अरे, तेरा पोर्टर तो आया नी मेरठ आले भाई", हरियाणा वाले एक भाईसाब ने कहा। " हाँ भाईसाब, आणा तो चहिए था उसे अब लो। कह तो रहा था कि आप लोगो को नैनसरोवर तक पकड लूँगा। पता नी कहाँ रह ग्या" मैंने कहा और हम नैनसरोवर के आगे सीधे खडे पहाड की ओर चल पडे। नैनसरोवर तक तो रास्ता पगडंडी के रूप में बना हुआ है। मगर यहाँ से आगे ना कोई पगडंडी है और ना कोई रास्ता। हैं तो बस पत्थर ही पत्थर ! इन्हीं पत्थरों के उपर लाल-पीले निशान लगे हुए थे। हमें बस इन्ही निशानों के बने हुए रास्ते पर ही जाना था। नैनसरोवर से श्रीखंड तक करीब 4-5 पहाड पार करने पडते हैं। जब हम इस पहले पहाड की चोटी पर पहुँचे तब हमें नीचे पार्वती बाग की ओर से गंगाराम आता दिखाई दिया। हालाँकि मुझे इस ग्रुप के साथ अब तक कोई दिक्कत नहीं आयी थी, सब लोगों का अच्छा साथ मिला था। मगर फिर भी गंगाराम को देखकर मन ही मन काफी खुशी हुई। थोडी ही देर में गंगाराम हमारे पास पहुँच गया। गंगाराम की अच्छाई और समझदारी का एक और नमूना मुझे यहाँ देखने को मिला। वो ना सिर्फ पार्वती बाग में रखा मेरा बैग लाया था बल्कि उसमें पानी की दो बोतलें भी रख रखी थी। हालाँकि उसको बिस्किट नहीं मिले थे। आते ही मुझसे बोला, "बम शंकर, सर मुझे पता है आपको पहाड चढते समय काफी प्यास लगती है। इसलिए मैं ये दो बोतल पानी ले आया।" गंगाराम वाकई एक अच्छा पोर्टर, गाइड और उससे भी कहीं बढकर एक बहुत अच्छा इंसान है। अब मैंने अपने हाथ में पकडी पानी की बोतल गंगाराम को दी और जेब से कपूर निकाल लिया था। रास्ते पर पत्थर थे और कहीं- कहीं बर्फ भी। यहाँ ऑक्सीजन की कमी साफ महसूस हो रही थी इसीलिए मैं बीच-बीच में कपूर सूंघ लेता था। इससे मुझे थोडी राहत सी महसूस हो रही थी। बहुत धीरे-धीरे हम लोग अपनी मंजिल की ओर बढते रहे।

श्रीखंड महादेव जाने के दो ट्रेक के बारे में मुझे पता है। एक तो यहीं पारंपरिक रास्ता जो जांव से थाचडू - भीमद्वार - पार्वती बाग होते हुए है। तथा एक दूसरा रास्ता जो बहुत कम लोग या कुछ लोकल लोग यूज करते हैं ज्योरी के पास फांचा से आता है जो सीधा नैनसरोवर से करीब डेढ-दो किलोमीटर आगे इसी रास्ते में मिलता है। लेकिन उस रास्ते पर चढाई ज्यादा है और रास्ते में शायद कहीं रुकने-खाने का भी बंदोबस्त नही होता है। भीमबही से थोडा पहले हमें पहाडी के उस ओर से फांचा वाले रास्ते से कुछ लोग भी आते मिले।

करीब दस बजे हम लोग भीमबही पहुंचे। भीमबही में बहुत बडे-बडे पत्थर बहुत ही सलीके से न जाने किसने तह बनाकर रखे हुए हैं और उससे भी आश्चर्यचकित करने वाली बात ये कि इन पत्थरों पर छोटे-छोटे गढ्ढेनुमा निशान बने हुए हैं जैसे इन पर किसी ने कुछ लिख रखा हो। ऐसा माना जाता है कि ये कारनामा महाबली भीम का है और इन पत्थरों पर उन्होनें अपनी हिमालय यात्रा के दौरान अपना कुछ हिसाब-किताब लिखा है। भीमबही में पत्थर इतने बडे-बडे हैं कि इन पर लट्ठ ले सहारे नहीं चढा जा सकता। यहाँ सिर्फ अपने हाथ और पैरों की ताकत ही काम आती है। जैसे ही हमनें इन विशाल पत्थरों के समूह को पार किया तो सामने श्रीखंड शिवलिंग और त्रिशुल की चट्टान के एक बार फिर दर्शन हुए। मगर अभी भी एक आंखिरी और सबसे बडी चुनौती बाकी थी। हमारे सामने था एक आंखरी ग्लेशियर जिसके उपर हमें लगभग 150 मीटर चलकर जाना था। ग्लेशियर पर हम सभी साथियों ने एक साथ लाइन बनाकर चलना शुरू किया। गंगाराम ने हमें समझाया कि अपने लट्ठ को जोर से बर्फ में गाडकर और जूतो के अगले हिस्से को थोडा बर्फ में धंसाकर चलो तो फिसलोगे नहीं। हमने ऐसा ही किया और धीरे-धीरे ये अंतिम बाधा भी पार कर ली।

करीब ग्यारह बजे थे जब हम श्रीखंड पहुंचे। श्रीखन्ड में जूते निकालने पडे और शिवलिंग के पास जाकर भोलेनाथ को नमन किया। जम्मू वाले दोनो बंदे परिक्रमा कर रहे थे, वे हमसे थोडा सा पहले पहुँच गये थे। मैं दरअसल शुरू से ही सबसे पीछे चल रहा था, बस मुझसे पीछे गुजरातियों में से एक बंदा था। यहाँ हरियाणा वाले भाइयों ने भोलेबाबा की आरती की और डमरू बजाकर भजन भी गाया। मैं बस आंखे बंद करके बैठकर ताली बजाता रहा। पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। श्रीखन्ड से ठीक आगे वाली पहाडी को कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है और यह स्थान चारों ओर से बर्फ से घिरा हुआ है। कार्तिकेय चोटी तक जाने के लिए रास्ता तो है लेकिन वहां कोई नहीं जाता। श्रीखण्ड में ही लगे एक सूचना पट्ट पर मैंने पढा कि यहाँ से एक रास्ता खीरगंगा और मणिकर्ण के लिए भी जाता है मगर ये पूरा रास्ता ग्लेशियरों से भरा है और बहुत ही खतरनाक है। यहाँ हम लोग करीब आधा घंटा रुके।  बहुत ही गजब की फीलिंग्स थी। हमने, मैंने ये कर दिखाया था।

श्रीखंड में आधा घंटा रुककर हम वापस चल दिये। मन में प्रसन्नता और संतोष के मिले जुले भाव थे। मगर आधा काम तो अभी भी बाकी था, वापस जाना। हमनें धीरे-धीरे नीचे उतरना शुरू किया। इन विशाल पत्थरों पर नीचे उतरना भी उतना ही मुश्किल हो रहा था जितना कि उपर चढना। शरीर में भी दम नहीं था, सुबह से कुछ भी नही खाया था। बस पानी, ग्लूकोस और ड्राई फ्रूट के सहारे ही आज की यात्रा चल रही थी। उपर से ऑक्सीजन की कमी ! नैनसरोवर से एक-डेढ किलोमीटर पहले मुझे एक उल्टी भी हुई। शायद ये सुबह से खाली पेट रहकर इतनी मेहनत करने का असर था। मेरे जैसी ही हालत हरियाणा वाले एक सर जी की भी थी जो उन छहों में सबसे बुजुर्ग थे, शायद पचास के आस-पास की उम्र के। नैनसरोवर पहुँचकर आंखिर इन बडे-बडे पत्थरों वाले पहाड से पीछा छूटा।

करीब साढे तीन बजे पार्वती बाग पहुँच गये। आज वो अंकल जी यहाँ से जा चुके थे। उसी टेंट में चाय पी और थोडा आराम किया। आज इस टेंट में पुलिस वालों के बैग्स पडे हुए थे, अर्थात आज पुलिस वाले यहाँ से निकल जायेंगे। बेचारे पुलिस वाले ! उन्हे भी अब अपने - अपने घरों को जाने को मिलेगा। ये भी बेचारे पिछले 10-15 दिन से इधर ही पडे हुए थे। टेंट वाले का कल से अब तक का हिसाब करके हम नीचे भीमद्वार की ओर निकल लिए। भीमद्वार पहुंचकर बडी शांति मिली। अनंत को पूरे जोश से बताया कि मैं भी दर्शन करके ही लौटा हूँ। हाँलाकि मारे थकान के पूरे शरीर का बुरा हाल था। अनंत को बोल दिया भाई अब सुबह की वापसी की यात्रा आराम से शुरू करेंगे। बस डिनर किया और लेटते ही कब नींद आ गयी पता ही नही चला।
 
पार्वती बाग से आगे मिले ब्रह्म कमल

थोडा और पास से


ब्रह्म कमल खिल रहा है।

नैनसरोवर में चौधरी साब - हालत खस्ता !
नैनसरोवर से आगे के रास्ते में कहीं पर
उपर वाली पहाडी से दिखता नैनसरोवर और उसके आस-पास की सुंदरता



नैनसरोवर से भीमबही के रास्ते में कहीं - चौधरी साब, गंगाराम और हरियाणा वाले ग्रुप से एक सर
भीमबही में पत्थरों पर न जाने ये क्या खुदा हुआ है?
रास्ते में पडने वाले ग्लेशियर और उसके आस-पास का विहंगम दृश्य

खतरनाक रास्ते
बर्फ और पत्थर - यही है बस इस रास्ते पर


श्रीखंड बाबा के द्वार पर पहुंचने से जरा पहले आंखिरी ग्लेशियर-बर्फ पार करने के बाद

श्रीखंड बाबा के द्वार चौधरी साब -  हालत और भी खस्ता !!
श्रीखंड के बारे में कुछ जानकारी

जय श्रीखंड बाबा - हर हर महादेव। पीछे वाली चोटी को कार्तिकेय माना जाता है। कहते हैं वहां तक कोई नही जाता।

जाट और शिवा - एक जबरदस्त कॉम्बिनेशन !!

हरियाणा वाले शिवाराधना कर रहे हैं। पीछे जो चोटी दिख रही है उसे कार्तिकेय कहा जाता है और उस ओर जबरदस्त बर्फ है।




















श्रीखंड में पूरी जाट पार्टी - चौधरी साब और हरियाणा आले !



श्रीखंड शिवलिंग के पास से बनाया गया विडियो!!


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मंगलवार, 6 सितंबर 2016

श्रीखंड महादेव यात्रा: भीमद्वार से पार्वती बाग और अनंत ने किये श्रीखंड बाबा के दर्शन

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27 जुलाई, दिन बुधवार।
आज हमारी श्रीखंड यात्रा का सबसे महत्तवपूर्ण और सबसे कठिन दिन था। आज हमें भीमद्वार से चलकर 10 किलोमीटर दूर 5250 मीटर की उंचाई पर स्थित श्रीखंड शिला के दर्शन करके शाम तक वापस भीमद्वार आना था। रात में डिनर के दौरान तय किया कि सुबह - सुबह 4 बजे तक निकल लेंगे ताकि शाम तक आराम से वापस आ सकें। मगर जब सोने लगे तो बारिश शुरू हो गयी। अब हम मन ही मन उपर वाले से दुआ करने लगे कि " हे प्रभु, प्लीज बारिश रुक जाय। ताकि हम कल अपनी यात्रा पूरी कर सकें"। मगर उसको तो अपने मन की करनी थी। रात भर बारिश होती रही। सुबह 5 बजे उठे तो भी बारिश हो रही थी। हम बारिश मे नही जाना चाहते थे। क्योंकि हमें अब तक बहुत से लोगों ने बोला था कि यात्रा का सबसे कठिन भाग तो पार्वती बाग से आगे नैन-सरोवर से शुरू होता है। उस पूरे रास्ते पर भयानक पत्थर हैं और उसके भी आगे बर्फ है। ऐसी बारिश में हम कैसे उन पत्थरों पर चलेंगे और बारिश के कारण तो बर्फ पर भी फिसलन हो गयी होगी। वैसे भी हमें अब तक बर्फ पर चलने का कोई अनुभव नहीं था। हालाँकि हमारे साथ गंगाराम था जो इस इलाके और इन कठिनाइयों से अच्छी तरह वाकिफ था। उपर से यात्रा खत्म हो रही थी और प्रशासन वाले टेंट वालो को अपने टेंट्स उखाडने के लिए कह रहे थे। ऐसे में हमें आगे जाना चहिये या बारिश रूकने का इंतजार करना चाहिये हम इसी दुविधा में थे। बारिश होती रही और हम टेंट में पडे रहे।

सात बज गये। बारिश कुछ थम सी गयी तो गंगाराम हमारे टेंट में आया और बोला -
"सर, क्या करना है? बारिश तो रुक रही है।"
"निकलेंगे थोडी देर में, तुम चाय और मैगी बनवा लो" अनंत ने कहा।
यह सुनकर गंगाराम चला गया। फ्रेश होकर हम लोग चलने की तैयारी करने लगे तो मैंने अनन्त से कहा कि भाई देख, मैं जहाँ तक जा पाउंगा, जाउंगा। तू उसके आगे अगर अकेला जाना चाहे तो चले जाना। वैसे तो अब मेरी तबियत ठीक-ठाक थी मगर अभी सौ फीसदी सही नही थी। दवाईयाँ, ग्लूकोस और कपूर एक बैग में रख लिया। कपूर ऊँचाई पर जाने पर साँस लेने में होने वाली प्रॉब्लम को काफी हद तक दूर करता है। आप लोग भी अगर कभी ऐसी ऊँचाई पर जायें तो कपूर जरूर साथ ले जायियेगा। चाय, मैगी खाकर करीब पौने आठ बजे हम लोगो ने भीमद्वार से प्रस्थान किया। अभी भी हल्की - हल्की बारिश हो रही थी। भीमद्वार से पार्वती बाग लगभग दो - ढाई किलोमीटर है। और इस पूरे रास्ते में हिमालय की दुर्लभतम जडी - बूटियां है। इन्ही जडी - बूटियों की वजह से इस रास्ते में ज्यादा देर रुक नहीं सकते, नही तो मदहोशी से लेकर मूर्छा तक छा जाने का खतरा रहता है। यहाँ एक विशेष प्रकार की जडी-बूटी की अधिकता है, जिसके प्रभाव से चक्कर आने लगते हैं। गंगाराम ने बताया कि सर ये बूटियां साफ मौसम में अधिक चढती हैं। आज आकाश में बादल हैं और बारिश भी हो रही है तो इनका इतना असर नही होगा फिर भी हमें कहीं भी बैठना नही है। थकान होने पर खडे-खडे ही दो मिनट तक सुस्ता लेना। हमने उसकी बात मान ली। करीब डेढ किलोमीटर चलने के बाद मुझे कुछ दिक्कत सी महसूस होने लगी। गंगाराम ने कहा, "सर रुकिये मत। ये बूटियों के असर की वजह से हो रहा है।" हम लोग चलते रहे और करीब नौ बजे पार्वती बाग पहुंच गये।

पार्वती बाग या पार्वती बगीचा ! जैसा कि नाम सुनकर लगता है कि कोई बाग-बगीचा टाइप होगा, पर ना तो यहाँ कोई बाग है और ना ही कोई बगीचा। यहाँ भी वही भीमद्वार की तरह हरी-हरी घास, कुछ दुर्लभ फूल और जडी - बूटियाँ। यहाँ हिमालय का दुर्लभतम पुष्प, ब्रह्म - कमल भी पाया जाता है। पार्वती बाग समुद्रतल से लगभग 4300 मीटर की ऊंचाई पर है। यहाँ कुछ टेंट लगे हुए थे, इनमें से एक टेंट में हम भी घुस लिए। यहाँ पहले से ही छह लोग और ठहरे हुए थे। बात हुई तो पता चला कि ये सभी लोग रोहतक, हरियाणा के रहने वाले हैं और सारे जाट हैं। ये लोग कल शाम से यहाँ ठहरे हुए थे, बारिश होने की वजह से आज आगे नही गये थे।

यहाँ हमने चाय पी। बारिश अभी भी चालू थी। अनंत ने कहा, "सर, आगे चलते हैं।" तो मैंने अब सिरे से खारिज कर दिया। "बारिश हो रही है, ऐसे में आगे जाना सही नही है" मैंने अपना तर्क दिया। "आज इन लोगो की तरह हम भी यहीं रुकते हैं, अगर कल मौसम सही रहा तो कल दर्शन के लिए जायेंगे नही तो बस यहीं से भोलेबाबा को राम-राम करके वापस चले जायेंगे।" गंगाराम की सलाह ली गयी तो उसने बोला कि सर अगर चलना है तो ज्यादा देर नही कर सकते जल्दी-जल्दी यहाँ से निकलना होगा। आगे जाने के लिये पुलिस वालों से भी परमिशन लेनी होगी। चूँकि मौसम सही नही है तो हो सकता है वो लोग आगे ना जाने दें। चाय पीकर अनंत और गंगाराम पुलिस वालों से बात करने चले गये। मैं इस टेंट में ही रहा। करीब 10 मिनट में वो लोग वापस आये।
मैंने पूछा "क्या रहा, क्या कह रहे हैं पुलिस वाले?"
"वो लोग बोल रहे हैं कि जाना चाहते हो तो अपने रिस्क पर जाओ। हम लोग कोई मदद नहीं कर पायेंगे अगर कुछ बात हुई तो" अनंत ने कहा।
"फिर तुम्हारा क्या प्लान है अब?"
"हम लोग तो आगे के लिए निकल रहे हैं। दो लोग और हैं मंडी से वो भी निकलेंगे हमारे साथ ही"
"मै नही जा रहा, मैं तो यहीं रहूँगा और अगर कल मौसम ठीक रहा तो कल जाऊँगा। तुम लोग जाना चाहते हो तो जाओ।" मैंने अपना अंतिम निर्णय सुनाया।

आंखिरकार जब वो लोग जाने लगे तो मैंने गंगाराम को बोला कि इस टेंट वाले को बोल दो, मैं आज यहीं रुकूँगा। मेरे खाने और सोने का इंतजाम कर दें। गंगाराम टेंट वाले को बोल आया। मुझे एक स्लीपिंग बैग और कम्बल मिल गया। हालाँकि यहाँ ठंड बहुत है मगर फिर भी स्लीपिंग बैग और कम्बल काफी है।

अनन्त और गंगाराम करीब 10 बजे चले गये और मैं पार्वती बाग में ही रुक गया। इस टेंट में हम सात "जाटों" के अलावा गाजियाबाद के एक अंकल जी भी थे। वे यहाँ पिछले चार दिनों से थे और तीन दिन तक कोशिश करने के बाद कल दर्शन करके आये थे। अंकल जी ने बताया कि वो कल सुबह चार बजे यहाँ से निकले थे और दोपहर के ढाई बजे श्रीखंड पहुँच पाये। वापसी में उनको रेस्क्यू टीम के तीन गोरखे अपनी कमर पर बांधकर दो घंटे में ही नीचे ले आये। अंकल जी ने मुझे काफी होंसला दिया कि बेटा यहाँ तक आ गये हो तो दर्शन करके जरूर जाना। दिन भर हम आठों की बातचीत होती रही। रोहतक वालों  के समूह में सभी लोग सरकारी नौकरी वाले थे। उन्होने बताया कि उन लोगो ने हमसे एक दिन पहले यानी 24 तारीख को सिंहगढ़ में रजिस्ट्रेशन कराया था। उधर अंकल जी का गाजियाबाद में अपना कुछ बिजनेस है। उन्हे हाई शुगर है मगर फिर भी वे अक्सर धार्मिक स्थलों की यात्रायें करते रहते हैं। उन्होने बारहों ज्योतिर्लिंग, चारों धाम, कैलाश मानसरोवर और अमरनाथ की यात्रा कर रखी है। अंकल जी ने ही हमें बताया कि कुल पाँच कैलाश हैं - कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ, मणिमहेश, श्रीखंड कैलाश और किन्नर कैलाश। मगर मुझे लगता है शायद अमरनाथ को कैलाश नही माना जाता है बल्कि पांचवा कैलाश है "आदि-कैलाश" जो उत्तराखंड के कुमाऊँ में स्थित है। उनका बस किन्नर कैलाश बचा है जिसको वे यहाँ से जाकर पूरा करेंगे। वाह ! , क्या बात है अंकल जी ? गजब के घुमक्कड हैं आप भी। आपकी इस जीवटता को मेरा सादर प्रणाम।

लंच में हमने कढी-चावल खाये और बस आराम किया। शाम को करीब साढे पाँच, पौने छह बजे तक अनंत और गंगाराम वापस आ गये। जब उन्होने बताया कि वो दर्शन करके लौटे हैं तो एक बार को तो किसी को यकीन नही हुआ मगर जब अनंत ने मोबाइल में फोटो दिखाये तो हम सबने उन दोनो की हिम्मत की तारीफ की। इन दोनो ने एक और बहादुरी का कारनामा किया था और वो था ऐसी बारिश व इस इतने ठंडे मौसम में नैनसरोवर में नहाने का ! नैन-सरोवर जो आधा जमा हुआ था उसमे नहाना तो दूर मैं तो हाथ-पैर धुलने की हिम्मत तक नही रखता। अनन्त ने पूछा सर आपका क्या प्लान है? तो मैने कहा मैं कल इन लोगों के साथ दर्शन के लिए जाउंगा। मतलब मैं रात को यहीं रुकूंगा। अनन्त ने कहा, सर आगे बहुत ज्यादा कठिन है आप ना कर पाओगे। मैंने कहा कोई बात नही मैं कल एक बार ट्राई जरूर करूँगा। वहां तक जा पाया तो ठीक, नही तो रास्ते से वापस आ जाऊँगा। यहाँ चाय पीकर उन दोनो को नीचे - भीमद्वार जाना था क्योंकि यहाँ से श्रीखंड जाते समय पूरे रास्ते बारिश होती रही थी और उनके कपडे भीगे हुए थे। जब वो लोग भीमद्वार जाने लगे तो मैंने गंगाराम से पूछा कि तुम कैसे करोगे तो उसने कहा, सर मैं कल सुबह नीचे से आ जाऊँगा। आप लोग निकल जाना,  मैं नैन-सरोवर तक आप लोगों को पकड लूंगा। हम सबने कहा ठीक है। रोहतक वालों ने गंगाराम से कुछ बिस्किट के पैकट ले आने को भी कह दिया। अनंत और गंगाराम भीमद्वार के लिए निकल गये।

शाम को पार्वती बाग में डिनर में राजमा चावल खाये। कल सुबह जल्दी निकल लेने का प्लान बनाया गया। कुल मिलाकर हम ग्यारह जनें थे जिन्हे कल दर्शन करने जाना था। सात हम जाट, दो बंदे जम्मू के और दो गुजराती जो अलग - अलग टेंट में थे। असल में गुजराती तीन थे, उनमे से एक मोटे से साथी का शाम को फिसलकर गिरने से पैर मुड गया था तो वो आगे नही जायेगा। वो मोटा आदमी और उन गुजरातियों का पोर्टर सुबह नीचे भीमद्वार जायेंगे। सुबह को चार, साढे-चार बजे तक निकलना तय हुआ। अनंत ने तो दर्शन करके फतह हाँसिल कर ली थी! अब कल मेरी बारी थी। अनंत की उस बात ने कि "सर आप ना कर पाओगे", मुझे मन ही मन प्रेरित कर दिया था कि कुछ भी हो मुझे यात्रा पूरी करके दिखानी है। भोले बाबा की कृपा से अब मैं बिल्कुल ठीक था और मन महादेव से मिलने को आतुर था।  हर - हर महादेव !! 


पार्वती बाग की ओर चलने पर उपर से दिखता भीमद्वार - फोटो कल शाम को लिया गया है। 

पार्वती बाग के बारे में जानकारी देता एक सूचना पट्ट

पार्वती बाग में लगे टेंट और इस मौसम का आनंद उठाता एक पहाडी कुत्ता !

पार्वती बाग में दो जांबाज - चौधरी साब और अनंत

पार्वती बाग से आगे पत्थरों के बीच खिला ब्रह्म कमल

अर्ध-जमी नैनसरोवर झील में स्नान करता गंगाराम

अब स्नान की बारी अनंत की - भगवान जाने इन लोगो ने कैसे इस मौसम में इस आधी जमी झील में स्नान किया। मैंने तो हाथ - मुंह भी ना धोये थे यहाँ पर अगले दिन !!
नैनसरोवर पर स्थित मॉ पार्वती के छोटे से मंदिर में पूजा करता अनंत

अरे ! बस भाई पुजारी बाबा

साक्षात दर्शन ! - श्रीखंड बाबा के द्वार पर अनंत। पीछे 72 फीट उंचा प्राकृतिक शिवलिंग और त्रिशूल

शिवा और अनंत

यही है वो स्थान जिसके लिए श्रधालु जांव से 35 किलोमीटर चलकर नदी नाले पहाड सब पार करता हुआ आता है।

हर हर महादेव

वापसी के समय श्रीखन्ड से थोडा पहले वाला आंखिरी ग्लेशियर। अनंत बाबा इस पर ध्यान लगाये बैठे हैं!!

इस फोटो में बायीं ओर जरा ध्यान से देखिये। यहाँ बायीं तरफ बहुत तेज ढलान है। यदि एक बार इस बर्फ पर बायीं ओर को फिसले तो गिरेंगे नीचे और पहुंचेंगे सीधे उपर !!

भीमबही से थोडा आगे - पत्थर और बर्फ

भीमबही में अनंत - यहाँ बहुत बडे-बडे पत्थर किसी ने काट्कर सलीके से तह बनाकर रखे हुए हैं। कहा जाता है कि यह कारनामा महाबली भीम का है।

विजयी मुस्कान - मार लिया मैदान !!

फतह हाँसिल हुई - थम्ब्स अप!! 

खतरनाक उतराई

नैनसरोवर के उपर वाली पहाडी पर नीचे उतरता अनंत




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शनिवार, 3 सितंबर 2016

श्रीखंड महादेव यात्राः थाचडू से भीमद्वार

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26 जुलाई 2016, दिन मंगलवार।
हमारी श्रीखंड महा-यात्रा जारी थी और कल हम लोग अपने पहले पडाव यानी थांचडू पहुंच गये थे। हमें थाचडू में ही पता चल गया था कि अब पार्वती बाग में यात्रियोंं को नही रुकने दिया जाता। वहाँ सिर्फ पुलिस, प्रशासन वाले और रेसक्यू वाले ही होते हैं। अतः आज हम लोग भीमद्वारी में रुकेंगे जो यहाँ से 10-12 किलोमीटर दूर है। सुबह पांच बजे तक निकल लेने का प्लान था। मगर सुबह सोकर उठे तो साढे - पांच बज रहे थे। जब तक हम जरूरी नित्य - कर्म से फारिग हुए तब तक गंगाराम चाय बनवा चुका था। चाय पीकर लगभग साढे छह बजे हम यहाँ से चल दिये। बडा अजीब सा मौसम था इस समय यहाँ, जैसा मैदानी इलाकों में सर्दियों के दिनों में होता है। धुंध सी छायी थी सारे वातावरण में - कोहरा और बादल। मगर ऐसे मौसम में चलने का मजा भी पूरा आ रहा था। चढाई अभी भी कल की तरह ही बरकरार थी - अनवरत, अडिग और अनंत ! लेकिन अब जंगल नही था। थी तो बस हरी-हरी घास और रंग बिरंगे फूल ! हम लोग ट्री-लाइन से उपर निकल चुके थे।

लगभग साढे आठ बजे हम लोग कालीटॉप पहुंचे। यहाँ आकर डंडाधार की चढाई खत्म हुई तो मन को थोडा सुकून मिला। कालीटॉप लगभग 3900 मीटर की उंचाई पर स्थित है। यहाँ से बहुत दूर स्थित श्रीखंड महादेव के प्रथम दर्शन हुए - बम शंकर ! कालीटॉप पर ही कालीमाता का एक छोटा सा मंदिर भी है। एक टेंट में चाय - मैगी का आनंद लिया गया। बहुत हल्की सी धूप निकली हुई थी और यहाँ पर कुछ लोग "एक्सरसाइज" भी कर रहे थे।

कालीटॉप पर करीब बीस मिनट का ब्रेक लेकर हम लोग आगे बढे। अब यहाँ से उतराई शुरू होती है और उतराई भी भयानक वाली ! कई जगह तो बिल्कुल खडे-खडे ही उतरना पडता है। हर कोई यही सोचता है कि पहाड पर चढने के मुकाबले उतरना ज्यादा आसान है। मगर यहाँ आकर पता चलता है कि भाई ऐसा नही है। पहाड पर उतरना भी उतना ही मुश्किल है जितना कि पहाड चढना। एक तो इतनी भयानक उतराई और उसपे बारिश का महीना ! जगह - जगह पत्थरों पर फिसलन हो जाती है जिससे फिसलने का खतरा बना रहता है।  इसी उतराई के निम्नतम बिंदू पर है भीमतलाई। कोई साढे दस बजे हम लोग भीमतलाई पहुंचे। यहाँ कुछ टेंट लगे हुए थे।  यहाँ पानी के छोटे -2 सोते हैं। एक जगह प्राकृतिक झरने में नहाने का भी इंतजाम है। पूरी यात्रा का सबसे सुंदरतम इलाका भी यही है। कालीघाटी से भीमद्वार तक ! पूरे इलाके में कुदरती खूबसूरती जबरदस्त रूप से बिखरी पडी है। एक तरह से कालीघाटी से भीमद्वार तक का इलाका एक "फूलों की घाटी" है। तरह - तरह के फूल और हरी - हरी घास मन को खूब भाती है। इस पूरे इलाके में कई तरह की दुर्लभ जडी - बूटियांं भी मिलती हैं जिनमेंं से "गुग्गल" प्रमुख है जिसका उपयोग धूपबत्ती-अगरबत्ती में महक बनाने मेंं किया जाता है। जांव और उसके आस - पास के गांव वाले यात्रा खत्म होने पर यहाँ से गुग्गल एकत्र करके उसे व्यापारियों को बेचकर अपनी कुछ दिन की आजीविका चलाते हैं।

पूरी श्रीखंड यात्रा को प्राकृतिक रूप से भी तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग - जंगल वाला रास्ता जो जांव से थांचडू तक है, दूसरा - घास और फूलों से होकर जाने वाला रास्ता जो कालीघाटी से पार्वती बाग तक है और तीसरा भाग - पत्थर और बर्फ से होकर जाने वाला रास्ता जो पार्वती बाग से श्रीखंड तक है। आज हम यात्रा के इसी दूसरे भाग में थे।

भीमतलई में अनंत और गंगाराम ने परांठे खाये जबकि मैंने बस चाय पी। ठंडा मौसम हो और पहाड की चढाई हो तो दिन में जितनी बार भी चाय मिल जाये उतना ही कम है। भीमतलई में करीब आधा घंटा रुककर हम लोग आगे बढे। यहाँ से भीमद्वार का रास्ता हल्की चढाई और उतराई वाला है। मतलब कुल मिलाकर चढाई ही है। करीब डेढ - दो किलोमीटर दूर कुन्सा में सूप पिया और मोमोज खाये। कुंसा से आगे एक जगह ग्लेशियर पार करना पडा। ये एक जमे हुए झरने जैसा था, जिस पर चलने में हालत खराब हो रही थी। ग्लेशियर और बर्फ देखने में जितना सुंदर लगता है इस पर चलना उतना ही मुशकिल होता है। गंगाराम ने बताया कि "सर, इस बार कुछ कम बर्फ गिरी है इसलिए रास्ते ठीक हैं। पिछले साल तो बहुत अधिक बरफ गिरी थी और कुंसा से आगे काफी ज्यादा बर्फ थी - सारे झरने ग्लेशियर बने हुए थे।" अच्छा हुआ इस बार कम बर्फ है नही तो जाने हमारा क्या होता! धीरे-धीरे चलते हुए, जगह - जगह रुकते रुकाते, कुदरत के इन बेशकिमती नजारों का आनंद लेते हुए हम लोग करीब तीन बजे तक भीमद्वार पहुंच गये।

भीमद्वार पहुंचकर मुझे हल्का-सा बुखार हो गया था। अतः मैं दवाई लेकर अपने टेंट में सो गया। अनंत और गंगाराम प्रकृतिक सुंदरता का मजा लेने और मटरगस्ती करने निकल गये।

सुबह के समय थाचडू से कालीघाटी की ओर 
थके हुए चौधरी साब ! 

अभी भी कालीघाटी तक चढाई बरकरार है - बस अब पेड खत्म हो गये हैं ! 
धुंंआ, बादल और पहाड - क्या गजब कॉम्बिनेशन है ?! 
दो जांबाज अपने श्रीखंड अभियान पर 
कालीघाटी में कालीटॉप के पास एक्सरसाइज करते कुछ लोग 
अनंत बस यही कह रहा है - आज में उपर, आसमांं नीचे 
कालीटॉप - यहाँ से श्रीखंड बाबा के प्रथम दर्शन हुए थे। 
कालीघाटी के बारे में जानकारी देता एक सूचना-पट्ट 
जय मॉ काली - भक्त अनंत 
धूप निकली तो कालीघाटी की खूबसूरती देखते ही बनती थी। 

थाचडू से भीमद्वार तक घास और फूल ही हैं। यहाँ गद्दी लोग अपनी भेडों को लेकर आते हैं और आश्चर्य की बात तो ये है कि ऐसे - ऐसे स्थानों पर भेडों को चढा देते हैं जहाँ तक आदमी का पहुंचना मुश्किल होता है। 
कालीघाटी से आगे की खतरनाक उतराई - है ना वाकई खतरनाक !! 
भीमतलई - पीछे मुडकर देखने पर
कुंसा से आगे मिला ग्लेशियर
भीमद्वार पहुंच गये हम लोग
भीमद्वार में हमारा टेंट


अनंत बाबा और पीछे पार्वती झरना

और अब कुछ प्रकृति के नजारे व फूल - 
कुदरत की खूबसूरती
कालीघाटी की खूबसूरती

एक अतिसुंदर, अनोखा फूल

ऐसे फूल आपको सिर्फ हिमालय में ही मिल सकते हैं।

पीले फूल

कुंसा के पास की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करता अनंत
मेरे हिसाब से हमारी श्रीखण्ड यात्रा के दौरान लिया गया बेस्ट फोटो - आपका क्या कहना है?
कुछ और बडे नीले फूल
फूलों की घाटी
नीलें फूलों की वादी
और अब गुलाबी मगर गुलाब नहीं
भीमद्वार से पहले एक झरना - ऐसे यहाँ अनेकों झरने हैं।
ये है गुग्गल जिसका प्रयोग धूपबत्ती और अगरबत्ती में होता है।

भीमद्वार की खूबसूरत वादी
भीमद्वार से दिखता पार्वती झरना और उसके आस-पास की खूबसूरती !

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