बुधवार, 20 अप्रैल 2016

यात्रा की शुरूआत



ना जाने कब से ब्लोग लिखने की इच्छा ने दिल मे घर कर रखा था। बडी इच्छा थी कि मै भी कुछ जरूर लिखूं लेकिन क्या और कैसे शुरुआत हो ये नही समझ आ रहा था। ऊपर से ये सरकारी नौकरी का महा बिजी श्ड्यूल। चलिये पहले कुछ अपने बारे में बात हो जाये ब्लॉग- ब्लूग तो फेर भी लिखा जागा।

"तो जी, मैं मोहित धामा, मेरठ उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। पेशे से सरकारी कम्पनी ( भारत हैवी ईलेक्ट्रिकल्स लिमिटिड, हरिद्वार) मे वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत हूँ। इसके पहले मैं  BHEL के दिल्ली स्थित कार्यालय मे  5 साल तक रहा हूँ।"

हाँ तो भाई अब बात करते हैं अपनी यात्रा के बारे मे। मेरे  दिल्ली वाले ऑफिस के दो दोस्तो (विनोद और विवेक) के साथ पिछ्ले साल ऑक्टूबर मे मैं देवरिया ताल, चोपता एवं तुंगनाथ की यात्रा पर गया था। हिमालय में हम तीनो की ये पहली यात्रा थी। विनोद हालाकी मेरा सीनियर और विवेक जूनियर है। लेकिन हम लोगो मे इस प्रकार की कोई फॉर्मलिटी नही है और हम तीनो बहुत ही अच्छे दोस्त हैं। अ‍पितु हमारे पूरे दिल्ली वाले ऑफिस मे ऐसा ही बगैर सीनियर और जूनियर के दोस्ती वाला ही कल्चर है। विनोद और विवेक दोनो के पास ही एकदम नयी बुलेट बाइक हैं। देवरिया ताल, चोपता एवं तुंगनाथ की यात्रा हमने बुलेट से ही की थी। क्या खूब मजा आया था उस यात्रा में !

तो  जी इस बार जैसे ही अप्रेल माह मे घुम्मकडी करने की बात हुई तो सर्वसम्मती से ये तय हुआ कि एक बार उत्तराखंड तो देख ही लिया है इस बार हिमाचल चलते हैं। हिमाचल मे कांगडा, धर्मशाला, मेक्लोड्गंज तथा आगे त्रियुंड तक ट्रैक करना तय हुआ। 9 से 13 अप्रेल तक यात्रा का समय तय हुआ। बंदे वोही हम तीन वेल्ले(मेरी धर्मपत्नी जी के कथनानुसार ) मैं, विनोद और विवेक। पिछली बार देवरिया ताल, चोपता एवं तुंगनाथ वाली यात्रा पर मुझे पूरे रास्ते अपनी पीठ पर बैग लटकाना पडा था तो बडी  दिक्कत हुई थी। अतः इस बार हम लोग कुछ ऐसा इंतजाम  करके जाना चहते थे ताकि मुझे या किसी को भी ऐसा अन्यथा कष्ट ना झेलना पडे। इसीलिये विवेक यात्रा से  4-5 दिन पहले बाजार जा कर पीछे वाली सीट पर लटकाने वाले बैग ले आया था।

अपने - 2  ऑफिस से छुट्टी लेकर हमने 9 अप्रेल को यात्रा की शुरूआत कर दी। विनोद और विवेक दोनो दिल्ली से अपनी बुलेट से आने वाले थे। जबकी मैं  हरिद्वार से अम्बाला बस से पहुचने वाला था। अम्बाला मे ही हम तीनो को मिलना  था। मैं एक दिन पहले ही यानी 8 तारीख की शाम को सहारनपुर स्थित अपनी ससुराल पहुच गया था ताकि सुबह जल्दी निकल कर टाइम से अम्बाला पहुच सकूं। 9 अप्रेल की सुबह हमारी हिमाचल यात्रा की शुरूआत हो गयी। लगभग तीन-साढे तीन घंटे बस मे खपकर मैं अम्बाला पहुचा। बल्कि पहुचा क्या अम्बाला से 8 किलोमीटर पहले एक भयानक जाम मे फंस गया। जाम इतना बुरा था कि 1-2 घंटे से पहले खुलने की उम्मीद कतई नही थी। उधर विनोद और विवेक भी कब के अम्बाला पहुच चुके थे और अम्बाला कैंट स्टेशन के पास मेरा इंतजार कर रहे थे। आंखिरकार जाम ना खुलता देख मैंने विनोद को उसी स्थान पर बुलाया तब कहीं जाके मैं 11:30 बजे तक अम्बाला पहुच सका।

अम्बाला मे हम लोगो ने कुछ जलपान आदि किया और मेरा व विनोद का बैग विवेक वाली बाइक पर बांध दिया। अम्बाला से हिमाचल जाने के दो रास्ते हैं एक चंडीगढ होते हुए शिमला वाला और दूसरा रोपड-कीरतपुर-आनंदपुर साहिब-उना होते हुए कांगडा -धर्मशाला वाला रास्ता। हाँलाकि और भी कई रास्ते हरयाणा - पंजाब से हिमाचल जाते हैं। हमें धर्मशाला जाना था इसलिये हम लोग रोपड (नया नाम रूपनगर) वाले रूट पर निकल पडे। तकरीबन ढाई घंटे बाद आनंदपुर साहिब पहुच कर एक पंजाबी ढाबे पर मस्त लन्च किया गया तथा उसके बाद आगे अपनी मंजिल की और बढ चले। आनंदपुर साहिब से लगभग 20 किमी आगे नांगल आता है। नांगल वही फेमस भांखडा-नांगल बांध  वाला। असल मे भांखडा-नांगल दो अलग-2 बांध हैं लेकिन पास-2 हैं इसलिये शायद भांखडा-नांगल बांध मिला के बोला जाता है। सुना तो हम सब भारतीयो ने है ही इसके बारे में।

नांगल पार करके 10-12 किमी आगे कहीं हम हिमाचल मे प्रवेश कर जाते हैं। आधे-एक घंटे मे ऊना पार करके हम लोग अम्ब पहुचे। अम्ब के आगे पहाडी रास्ता शुरु हो जाता है। एक रास्ता अम्ब से  ज्वालाजी  होते हुए कांगडा जाता है जबकि एक और रास्ता अम्ब से 4 किमी आगे मुबारकपुर से शुरु होता है। और देहरा होते हुए कांगडा-धर्मशाला जाता है। ये रास्ता अम्ब वाले रास्ते से अच्छा बना हुआ है। तो हम मुबारकपुर मे 15 मिनट का टी ब्रेक ले कर इसी रास्ते पर बढ चले। अभी शाम के पोने पांच बजे थे, और मुबारकपुर से धर्मशाला लगभग 90 किमी दूर है। तय हुआ के अंधेरा होने के बाद यात्रा नही करेंगे चाहे कंही तक पहुचे। देहरा-रानीताल होते हुए करीब सात-साढे सात बजे जब हम कांगडा पहुंचे तो अंधेरा हो चुका था। हालॉकी आगे धर्मशाला केवल 25 किमी ही रह जाता है लेकिन हमने कांग़डा मे ही रुकने का प्लान बना लिया। एक तो हम पहले ही तय कर चुके थे के रात मे ट्रैवल नही करना है और फिर कल वैसे भी हमे कांग़डा फोर्ट और ब्रजेष्वरी देवी मंदिर देखना है तो सुबह फिर धर्मशाला से कांग़डा वापस आना पडता। इसिलिये एक चाय की दुकान पे चाय पीने के साथ-2 होटल की जानकारी ली। होटल पहुचकर घर वालो को कांग़डा तक पहुचने की सूचना दी और  डिनर कर के सो गये।

कांगडा में होटल से दिखता कांगडा शहर और धौलाधार के बर्फीले पहाड। 4000 मीटर से भी ज्यादा उंचे हैं ये पहाड

अगले दिन  सुबह लिया गया कांगडा शहर और धौलाधार का फोटो

एक और

कांगडा घाटी में गेंहू की खेती बडे पैमाने पर होती है

कांगडा घाटी में ही कहीं रास्ते में

अगले दिन  सुबह होटल की छत से लिया गया एक और फोटो
अ‍गले भाग में जारी....

इस यात्रा के किसी भी भाग को पढने के लिये यहाँ क्लिक करें।

13 टिप्‍पणियां:

  1. Wow... Mohit sir... Well written. And amazing travel experience. Keep traveling keep writing.

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  2. Shaandaar zabardast zindabad !!! Bahut badiya ustaad..maza aa gya...aage ka bhi jaldi likhna...

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  3. aap sabhi ka bahut-2 dhanyawad....bs agla bhag bahut jald hi aapke samaksh hoga..

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